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कब खुलेगी किस्मत ? नेता पुत्रों की

राजनीति में सक्रिय नहीं नेताओं के पुत्र भाजपा में आधे दर्जन से अधिक दिग्गज नेताओं ने कई वर्षों पहले से अपनी राजनीतिक विरासत को अगली पीढ़ी को सौंपने की तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन परिवारवाद के कारण कईयों की मंशा पूरी नहीं हो पाई है। पहले राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में अपनी उपस्थिति का लोहा मनवाने वाले नेता पुत्र अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। फिलहाल इस मुद्दे पर पार्टी के कोई भी नेता खुल कर बोलना नहीं चाहते हैं। हर किसी का यह कहना है कि राजनीतिक विरासत पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्पष्ट संदेश के बाद कहने के लिए कुछ नहीं बचता। इसका असर दिखने लगा है। पहले नेताओं के पुत्र सक्रिय रहते थे वे अब नजर नहीं आ रहे हैं। यदि परिवारवाद पर रोक का असर टिकट वितरण पर भी नजर आया तो दिग्गजों और उनके पुत्रों के राजनीतिक अरमान ठंडे हो जाएंगे। उधर, चुनावों में किस्मत आजमाने की आस लगाए बैठे नेता-नेता पुत्रों को पार्टी का यह दावा भी निराश करने वाला है कि पिछले दिनों जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, वहां भाजपा को मिली जीत परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देने की वजह से हुई है। चुनाव लडऩे की मंशा धरी की धरी रह गई पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, गौरीशंकर बिसेन और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा जैसे राजनेताओं के पुत्र-पुत्री पहले राजनीति में जमकर सक्रिय थे, वे अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में मप्र में पार्टी के दिग्गजों पर अपनी राजनीतिक विरासत पुत्रों को देने की मंशा पर संकट गहरा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले से सक्रिय हैं। इस लोकसभा चुनाव में उन्होंने विदिशा में जनसभाएं की भी कीं। शिवराज सिंह चौहान ने यहां से चुनाव लड़ा है। हालांकि, पहले उन्होंने कहा था कि जनता योग्य समझेगी तभी टिकट की दावेदारी के बारे में सोचूंगा। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र सिंह तोमर (रामू) भी लगभग 10 वर्ष से राजनीति में सक्रिय हैं। विधानसभा चुनाव 2023 में उन्हें टिकट मिलने की अटकलें थी पर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने नरेंद्र सिंह तोमर को ही प्रदेश की राजनीति में लाकर विधानसभा चुनाव लड़ाया। सागर जिले की रहली विधानसभा सीट से नौ बार के विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव भी बेटे अभिषेक को स्थापित करना चाहते हैं। वह दमोह या खजुराहो से इस बार लोकसभा चुनाव के टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे, पर पार्टी ने दमोह से राहुल सिंह लोधी का उतारा। उधर, दमोह से वर्ष 2023 में सातवीं बार विधायक बने और पूर्व मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ वर्ष 2021 के उपचुनाव में यहां भाजपा से टिकट की दावेदारी भी कर रहे थे, पर पार्टी ने कांग्रेस से आए राहुल लोधी को उतारा। राहुल चुनाव हारे तो मलैया परिवार पर भितरघात का आरोप लगा। सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया गया था। वह दोबारा अप्रैल 2023 में पार्टी में शामिल तो हो गए, पर पार्टी ने उनकी जगह फिर जयंत मलैया हो ही यहां से टिकट दिया। बालाघाट से विधायक व पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी मौसम को आगे बढ़ा रहे थे। उन्हें विधानसभा का टिकट भी मिला था, पर लडऩे से मना कर दिया तो अंतत: गौरीशंकर को ही चुनाव लडऩा पड़ा। अब नेता पुत्रों की किस्मत कब खुलेगी इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

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