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इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक इन 50 सालों में कैसे मिलती गई प्रोजेक्ट टाइगर को सफलता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर रविवार को नए आंकड़े जारी किए। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, अब देश में बाघों की संख्या 3000 के पार हो गई है। पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया कि टाइगर की आबादी 3167 है। बता दें साल 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी। ऐसे आइए जानते हैं इन सालों में टाइगर प्रोजेक्ट को कैसे सफलता मिली।

कब हुई प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत?

प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत वर्ष 1973 में इंदिरा गांधी ने की थी। टाइगर की संख्या देश में दो हजार से नीचे थी। तब उन्हें बचाने के लिए मुहिम शुरू की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने करण सिंह की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया। इस पैनल में मानस, पलामू, सिमलीपाल, कॉर्बेट, रणथंभौर, कान्हा, मेलघाट, बांदीपुर और सुंदरबेन समेत नौ रिजर्व का खाका तैयार किया। साथ ही इन इलाकों पर ध्यान दिया गया। शिकारियों पर नजर रखी गई। बाघों को शिकार करने के लिए जानवारों को छोड़ा गया।

क्यों कम होने लगे थे भारत में बाघ?

एक समय देश में बाघों की संख्या 20 हजार से 40 हजार के बीच थी, लेकिन शिकार और तस्करी के चलते टाइगर महज 1820 रह गए थे। प्रोजेक्ट टाइगर के बाद बाघों की आबादी बढ़ने लगी।

कैसे मिली प्रोजेक्ट टाइगर को सफलता?

प्रोजेक्ट टाइगर को बड़ी सफलता मिली है। सीमा 75,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैल गया है। बाघों की संख्या तीन हजार से ज्यादा हो गई है। 1980 के दशक में देश में 15 टाइगर रिजर्व थे। अब भारत में 54 टाइगर रिजर्व हैं। 2006 में 1,411, 2010 में 1,706, 2014 में 2,226 और 2018 में 2,967 बाघ थे।

कैसे होती थी बाघों की गणना?

पहले ट्रांजिट लाइन डालकर उसपर चलकर टाइगर के प्रत्यक्ष प्रमाण जुटाए जाते थे। ट्रैप कैमरे, पगमार्क और विष्ठा जांचते थे। पेड़ों पर खरोंच के निशान, सैटेलाइट इमेज के प्रमाण का मिलान करते थे। जिन शावकों की उम्र 18 महीने से ऊपर होती थी, उन्हें गणना में जोड़ा जाता था।

इस बार ऐसे हुई गणना

सैटेलाइट मैपिंग के साथ जियो मैपिंग की गई। रिजर्व और सेंचुरी के बाहर के टाइगरों को जोड़ा गया। इस बार एक साल के शावक को जोड़ा गया है। बाघ की दहाड़, पेड़ों पर उनके बाल, रगड़ के निशान और टेरेटरी मार्क को प्रमाण माना गया। यूरिन स्प्रे को सूंघ कर उसकी उपस्थिति को दर्ज किया गया। वहीं, यूरिन स्प्रे से बने फंगस की जांच की गई।

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