राजनीति ने राजनीत से ही कर ली राजनीति

राजनीति और कुश्ती में फर्क बस इतना ही होता है कि कुश्ती में दांव लगाकर प्रतिस्पर्धी को पटखनी दी जाती है जबकि राजनीति में दांव दिखाया कुछ जाता है और लगाया कुछ जाता है। बावड़ी की स्लैब टूटने जैसे दुखद हादसे के बाद भाजपाइयों में राजनीतिक जंग तेज हो गई है। निशाने पर सांसद शंकर लालवानी है। हादसे के कुछ घंटों के बाद जिस तरह सांसद की घेराबंदी शुरू की गई उसे शुरुआत में तो सांसद खेमा भी समझ नहीं पाया। लेकिन बाद में जब इंटरनेट मीडिया से लेकर सड़कों तक चौतरफा जुबानी हमले होने लगे तब माजरा समझ आया कि राजनेताओं के साथ राजनीति हो गई है। सवालों से घिरे लालवानी ने दो पन्नों का पत्र लिखकर जवाब तो दे दिए हैं लेकिन अब उनकी टीम राजनीति की कुश्ती के उन पहलवानों को तलाश रही है जिन्होंने इस पूरे प्रकरण की पटकथा लिखकर उसे सांसद की ओर मोड़ दिया।
अब सियासी गर्मी से तपेगा निमाड़
प्रदेश में निमाड़ क्षेत्र अपनी गर्म आबोहवा के लिए पहचाना जाता है। लेकिन इस बार निमाड़ कुछ ज्यादा ही गर्म होगा। दरअसल ये गर्मी ‘सियासत’ की होगी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को छह सीटों पर समेटने वाले निमाड़ में चुनावी साल में दोनों ही दल पूरी ताकत झोंक रहे हैं। भाजपा यहां से मिली दस सीटों की हार के जख्म को भूली नहीं है तो कांग्रेस यहां मिली बढ़त बरकरार रखने के लिए सारे क्षत्रपों को एकजुट करने में जुटी है। भाजपा ने निमाड़ का वार रूम मालवा के शहर इंदौर को बनाया है। यहां से वरिष्ठ नेताओं को पूरी योजना और तैयारी के साथ खरगोन, खंडवा, बड़वानी और बुरहानपुर जिलों में भेजा जा रहा है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रभात झा को निमाड़ क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रदेश अध्यक्ष रहते झा ने मालवा-निमाड़ क्षेत्र में खासा मैदानी नेटवर्क तैयार किया था जिसका लाभ भाजपा इस चुनाव में लेना चाहती है।
तीसरी ताकत की सुगबुगाहट से दोनों दल चौकन्ने
इंदौर से सटे महू विधानसभा क्षेत्र में बीते दिनों हुए बवाल के बाद प्रशासन और पुलिस ने तो अपने स्तर पर आदिवासी युवती की मौत के कारणों की पड़ताल की लेकिन राजनीतिक दलों ने इसके पीछे छुपे अर्थ तलाशने शुरू कर दिए हैं। विधानसभा चुनाव में यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता है लेकिन इंदौर जिले का इकलौता आदिवासी बहुल क्षेत्र होने की वजह से जयस का प्रभाव भी ग्रामीण क्षेत्रों में नजर आने लगा है। राजनीतिक दलों के लिए यही चिंता की बड़ी वजह है। वोटों के ध्रुवीकरण का परिणाम बीते चुनाव में धार, झाबुआ और आलीराजपुर क्षेत्र में दोनों दलों ने देख ही लिया है। इस चुनाव में भी यदि तीसरी ताकत ‘ताकतवर’ हो गई और मनावर की तर्ज पर ही जयस के ‘डाक्टर’ मैदान में उतर आए तो नई चुनौतियों से जूझना होगा यही चिंता क्षेत्र के पुराने राजनेताओं को सता रही है।
क्यों नहीं हो रही मोर्चा की चर्चा
भाजपा की संगठन रचना ऐसी है कि समाज के हर वर्ग और आयु के लोगों को किसी न किसी माध्यम से जोड़ने के लिए टीम तैनात रहती है। स्कूल, कालेज से लेकर जाति-जनजाति तक के लिए अलग-अलग मोर्चा प्रकोष्ठ भी बने हुए हैं। शुरुआती दौर में युवा मोर्चा जैसे प्रकल्पों ने मैदानी पकड़ मजबूत भी की थी लेकिन बीते कुछ सालों से मोर्चा की कहीं चर्चा तक नहीं होती। बड़े नेता इसी वजह से परेशान हैं कि वृहद आयोजन कर देशभर में अपनी पहचान बनाने वाला युवा मोर्चा आखिर गुमसुम क्यों है। चुनावी साल में मोर्चा को चर्चा में लाने की जिम्मेदारी तो प्रदेश संगठन ने ली है लेकिन इंदौरी नेता अब भी मोर्चा के पदाधिकारियों को काम में नहीं जुटा सके। युवाओं को जोड़ने के लिए होने वाले आयोजनों की योजना कागजों से ही बाहर नहीं आ पाई है। अब देखना यह है कि मोर्चा फिर से चर्चा में रहता है या मोर्चा के कुछ न करने की चर्चा होती है।