जगदलपुर। Ram Navami Special 2023: रामायण काल का दंडकारण्य, जहां भगवान श्रीराम ने वनवास के 14 में से 10 वर्ष बिताए थे, जो अब बस्तर के नाम से जाना जाता है। रामायण में दक्षिण कोशल का अंग रहे इस बस्तर के सैकड़ों गांवों में आदिवासी मतांतरित होकर अपने रीति-रिवाज, संस्कृति से विमुख हो चुके हैं।
मतांतरण से जूझते बस्तर में रामराज्य लाने आदिवासी बनाएंगे श्रीराम मंदिर
आदिवासी और मतांतरित एक-दूसरे के विरुद्ध कुल्हाड़ी, डंडे लिए खड़े हैं। इससे गांव दो फाड़ में बंट गए हैं। ग्राम सभाओं में आदिवासी खुद के लिए मूलधर्म कोड की मांग करते हुए खुद को अन्य धर्म से अलग बता रहे हैं। आदिवासियों में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो खुद को सनातनी हिंदू मानता है। इन्होंने अब मतांतरितों को वापस अपने मूलधर्म और संस्कृति से जोड़ने के उद्देश्य से दो दिन पहले बस्तर जिले के दस से अधिक गांव के ग्रामीणों ने घाटलोहंगा में श्रीराम मंदिर की नींव की पहली ईंट रखी है।
आदिवासियों के सहयोग से 3000 वर्ग फुट में बनेगा राम मंदिर
मंदिर बना रहे आदिवासियों का कहना है कि बस्तर के शांतिप्रिय गांवों में अब मतांतरण के राक्षस ने घर कर लिया है, जिससे शांत गांव अब अशांत हो चुके हैं। श्रीराम मंदिर के निर्माण से अशांत बस्तर में रामराज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा। यहां बन रहे मंदिर के लिए छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय उपाध्यक्ष राजाराम तोड़ेम ने अपनी डेढ़ एकड़ जमीन मंदिर के लिए दान की है। इसमें 3000 वर्ग फुट में आदिवासियों के सहयोग से मंदिर का निर्माण अयोध्या के राम मंदिर की प्रतिकृति की तरह किया जाएगा।
दो दिन पहले चैत्र नवरात्र की सप्तमी तिथि को घाटलोहंगा में मंदिर के भूमिपूजन में क्षेत्र के दो हजार से अधिक ग्रामीण सम्मिलित हुए। गांव के आदिवासी बालक-बालिकाएं गेरुए वस्त्र पहनकर भगवान राम का रूप धरकर पहुंची थी। घाटलोहंगा से श्रीराम की शोभायात्रा टिकरालोहंगा, कोलचूर, परचनपाल होते हुए आसपास के दस से अधिक गांव तक निकाली गई।
मध्यपाषाणकालीन गांव में एक भी मतांतरण नहीं
इंद्रावती नदी किनारे बसे घाटलोहंगा गांव से मध्यपाषाणकालीन प्रस्तर के औजार मिलने से गांव के प्रागैतिहासिककालीन होने के प्रमाण इतिहासकारों को मिले हैं। घाटलोहंगा के सरपंच डमरुधर बघेल बताते हैं कि गांव में 250 परिवार के करीब 1350 परिवार रहते हैं। कुछ वर्ष पहले इस गांव के चार परिवार मतांतरित हो गए थे, पर बाद में वे भी मूलधर्म में लौट आए। अब इस गांव में एक भी मतांतरित नहीं है। डमरुधर बताते हैं, गांव में आज तक कभी कोई विवाद देखने को नहीं मिला है।
आदिवासी सनातन संस्कृति को मानने वाले
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय उपाध्यक्ष तोड़ेम कहते हैं कि आदिवासी सनातन संस्कृति को मानने वाले हैं। आदिकाल से आदिवासी गांव के देवी-देवताओं, प्रकृति को पूजने वाले हैं। वामपंथी मानसिकता से जुड़े लोग आदिवासियों के सनातनी हिंदू नहीं होने का भ्रम फैला कर आदिवासियों को बांटने का काम कर रहे हैं। इसका फायदा उठाकर आदिवासियों को मतांतरित किया जा रहा है। समाज के बस्तर जिलाध्यक्ष दशरथ कश्यप बताते हैं कि बस्तर के आदिवासी गीतों में राम गाथा गाई जाती है। पूर्वजों के नाम के आगे या पीछे राम नाम रहता है।
भगवान श्रीराम के यहां आने के अनेक प्रमाण
सागर यूनिवर्सिटी के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष रहे स्व. प्रो. केडी वाजपेयी की किताब में बताया गया है कि भगवान राम वनवास काल में बस्तर आए थे। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड में जिस चित्रकूट का उल्लेख हुआ है वह बस्तर का चित्रकोट जलप्रपात है। वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड में भी चित्रकूट की चर्चा है। अरण्यकाण्ड और अयोध्याकाण्ड के चित्रकूट भिन्ना-भिन्ना थे। रावण को निर्मूल करने के बाद पुष्पक विमान से अयोध्या लौटते हुए श्रीराम ने भगवती सीता को दंडकारण्य में स्थित चित्रकूट का दर्शन कराया, उसका वर्णन कालिदास कृत रघुवंश में हुआ है। इसमें उल्लेखित चित्रकूट, बस्तर के चित्रकोट की तरह है। बस्तर में शबरी नदी, शबर (सौरा जाति), बीजापुर और नारायणपुर जिलों में स्थित कोसलनार, कुशनार, श्रीराम का अंचल से सम्पर्क प्रदर्शित करते हैं।