इंदौर में तैयार किया वरुणा सर्वर के साथ पर्यावरण को भी रखेगा सुरक्षित

इंदौर। वैश्विक स्तर पर डेटा की डिमांड बढ़ती जा रही है और इसे सर्वर के माध्यम से सुरक्षित रखने का प्रयास किया जा रहा है। डेटा को जिस सर्वर में रखा जाता है उसे वातानुकूलित महौल में रखने के दौरान कार्बन उत्सर्जन ज्यादा होता है वही पानी का भी उपयोग किया जाता है। इंदौर की रेकबेक डेटा सेंटर द्वारा लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर को तैयार कर ‘वरुणा’ नाम दिया है। इसमें सर्वर को खास तरह के प्रोपराइटरी डाइ इलेक्ट्रिक फ्लूड में डुबोकर को 22 से 30 डिग्री पर रखा जाता है।
इस तकनीक में सर्वर को 24 घंटे से एसी के तापमान में रखने से निजात मिलेगी। लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर में सर्वर रखने 50 फीसद ऊर्जा बचत होगी। कंपनी द्वारा इसका प्रोटोटाइप तैयार कर उपयोग किया जा रहा है। कंपनी इसका पेटेंट भी हासिल करने की कवायद में जुटी है और अगले दो से तीन माह में यह बाजार में उपलब्ध हो जाएगा। कंपनी ने अभी 25 किलो वाट क्षमता का लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर तैयार किया है। इसके बाद 500 किलोवाट का लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर तैयार किया जाएगा, इसक आकार एक कंटेनर के बराबर होगा। अभी जहां एक कमरे के सर्वर रखे जाते है वही ये सर्वर पोर्टेबल होंगे जिसके कही भी लाया और ले जाया जा सकेगा।
यूरोप व यूएस से कम खर्च में उपलब्ध हो सकेगा लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर
लिक्विड कूलेंट वाले सर्वर की तकनीक उपयोग फिलहाल यूएस व यूरोप में किया जा रह रहा है। इंदौर की रेकबेक डेटासेंटर भारत की पहली कंपनी है जिसने स्वदेशी तकनीक पर लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर तैयार किया है। यूएस व यूरोप में जहां इस तकनीक से 25 किलोवाट का सर्वर बनाने में 70 हजार डालर खर्च करना पड़ते है। वही इंदौर में तैयार किया गया कूलेंट सर्वर 20 से 25 हजार डालर में उपलब्ध हो सकेगा। विदेशी कूलेंट सर्वर के मुकाबले 50 फीसद कम कीमत में इसे तैयार किया गया है।
एशिया व अफ्रीका महाद्वीप के देशों के लिए काफी कारगर
किसी भी सर्वर से निकलने वाली उष्मा के नियंत्रण के लिए उसे वातानुकूलित स्थिति में रखने की जरुरत होती है। एशिया व अफ्रीका महाद्वीप के देशों में जहां मौसम गर्म होता है, वहां के लिए कूलेंट सर्वर काफी कारगर रहेगा।
50 फीसद ऊर्जा की होगी बचत
वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मांग तेजी से बढ़ रही है। सामान्य सर्वर के मुकाबले एआइ सर्वर को तीन से चार गुना ज्यादा एनर्जी लगती हैं। इस तरह के सर्वर को लिक्वड कूलेंट डेटा सेंटर में रखने से ऊर्जा की 50 फीसद से ज्यादा बचत हो सकेगी। भविष्य में डेटा की डिमांड बढ़ती जा रही है। ऐसे में बड़े एयर कूल्ड डेटा के सेंटर के बजाए अब लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर की मांग बढ़ेगी। इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। हम ये लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर आर्मी, फाइव जी व देश की प्रमुख एजेंसियों व डेटा सेंटर एजेंसियों को उपलब्ध करवाएंगे। – नरेन्द्र सेन, सीइओ रेकबेक डेटासेंटर
– डेटा सेंटर के संचालन में दुनिया का कुल एनर्जी का 3 प्रतिशत उपयोग होता है। लिक्विड कूलेंट तकनीक में 1 प्रतिशत ऊर्जा का ही होगा उपयोग।
– 25 किलोवाट क्षमता के लिक्विड कूलेंट डेटा सेंटर में एक साथ 25 सर्वर रखे जा सकते है।
– 1 मेगावाट का एयर कूल्ड सर्वर तैयार करने पर 40 करोड़ रुपये खर्च होनते है। वही कूलेंट तकनीक वाले डेटा सेंटर पर 20 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
– एयर कूल्ड डेटा सेंटर को 12 से 18 माह लगते है तैयार होने में यह तीन माह में तैयार हो जाएगा।
– 40 फीट कंटेनर में 500 किलोवाट का सर्वर रखा जा सकेगा।
– एयर कूल्ड सर्वर खुले में रहता है इस वजह से धूल,मिट्टी व नमी के संपर्क में रहने के कारण इसकी अधिकतम उम्र तीन वर्ष होती है। वही लिक्विड कूलेंट डेटा 7 से 10 साल तक करेगा काम।
– इस तकनीक में कूलिंग के लिए पंखे का इस्तेमाल न होने से ध्वनि प्रदूषण नहीं होगा, वही तरल पदार्थ में रखे होने के कारण आग लगने का खतरा भी नहीं होगा।